हम सकारात्मक कैसे बने ? हम सब जानते हैं कि सकारात्मकता हमारे सुखमय जीवन के लिए बहुत ज़रूरी है। अगर हम अपने व्यवहार को सकारात्मक बना लें तो हम एक सफ़ल और आनंदमय जीवन का आनंद उठा सकते हैं।
सकारात्मकता वह मानसिक अवस्था है जहाँ जीवन की हर समस्या एक चुनौती तथा नए अवसर के रूप में दिखने लगती है। सकारात्मकता हमें जीवन के हर उतार -चढ़ाव को ख़ुशी -ख़ुशी झेलने की शक्ति देती है। सकारात्मकता के कारण हम अपने किसी भी लक्ष्य को बिना हार माने हुए निश्चित तौर पर प्राप्त कर लेते हैं।
तो यह बात तो स्पष्ट है कि सकारात्मकता हम सबके जीवन के लिए बहुत ज़रूरी है तो हम सबको भी अपने जीवन में सकारात्मकता को अपनाना चाहिए और अपने जीवन को सार्थक तथा सफल बना लेना चाहिए। तो हम सकारात्मक कैसे बने ?
इसमें क्या मुश्किल है ?? सुनने में ये जितना आसान लगता है इसे अपने जीवन में उतारने के लिए हमें सिर्फ़ थोड़ा सा प्रयास करना पड़ता है। हाँ हाँ थोड़ा नहीं , बल्कि बहुत ज्यादा प्रयास करना पड़ता है। 😄
असल में हमारी पूरी ज़िंदगी की खुशहाली हमारे सकारात्मक नज़रिये पर ही निर्भर है। ज़िंदगी सुख और दुःख से भरी हुई है लेकिन हमारा सकारात्मक व्यवहार हमें दुःख में भी हिम्मत नहीं हारने देता है और हमें हमारी ज़िंदगी में खुश रखता है। “खुशी ” 😍अहा ! आप सोच सकते हैं कि जीवन में खुश रहना कितनी बड़ी उपलब्धि है और ये उपलब्धि हमें सकारात्मकता के कारण आसानी से प्राप्त हो जाती है तो तो प्रश्न ये है कि सकारात्मक कैसे बने ?
नकारात्मकता की पहचान कैसे करें ?
समस्या ये है कि कई बार हम ये स्वीकार ही नहीं करते कि हम नकारात्मकता के शिकार हो चुके हैं। हम अपना पूरा जीवन दुःख में गुज़ार देते हैं लेकिन दो पल ठहर कर ये सोचने का प्रयत्न ही नहीं करते हैं कि जीवन में कुछ तो ठीक नहीं चल रहा है क्योंकि प्रसन्न रहना हम सबका जन्मसिद्ध अधिकार है और हम अपने इस अधिकार को पाने का कभी प्रयत्न ही नहीं करते हैं।
जीवन में जब मन दुखी और परेशान रहने लगे , अपने आस-पास कुछ भी अच्छा न लगे। किसी भी काम में मन ना लगे। सारी दुनिया अपनी दुश्मन लगने लगे और सबसे महत्वपूर्ण बात ये महसूस होना कि भगवान ने सारे दुःख हमारी ही किस्मत में लिख दिये है। इनके अलावा बिना कठिन परिश्रम के फल प्राप्ति की इच्छा रखना , अपने को सर्वश्रेष्ठ समझना , ज़रूरत होने पर भी नई -नई चीज़ों को सीखने से दूर भागना , समय के साथ खुद को नहीं ढालना और हर तकलीफों के लिए दूसरों को दोष देना , दूसरों की भावनाओं को महत्त्व नहीं देना ,सिर्फ स्वयं की इच्छाओं और भावनाओं को प्राथमिकता देना और बहुत ही महत्वपूर्ण दूसरों के द्वारा किए गए हर कार्य तथा प्रयत्न में सिर्फ़ बुराई ढूँढ़ना , अपनी बात को सही साबित करने के लिए गलत तर्क देना और उसे सही साबित करने के लिए भी गलत तथा अड़ियल व्यवहार करना – ये सब नकारात्मकता के लक्षण है। जब व्यक्ति इस तरह का व्यवहार करने लगे तो समझ लेना चाहिए कि नकारात्मकता ने व्यक्ति को अपने चंगुल में जकड़ लिया है।
नकारात्मक नज़रिये वाला व्यक्ति हर कार्य ,व्यक्ति या घटना में बुराई ही ढूँढ़ता है। ऐसे व्यक्ति के लिए कुछ भी कर लो लेकिन ऐसे लोग खुश कभी नहीं होते हैं।
सकारात्मक तथा खुशहाल होने के लिए सबसे ज़रूरी है कि परिस्थितियों को अच्छे से जाँचा परखा जाये , जो चीज़ें हम बदल सकते हैं , उन्हें बदल दिया जाये और जो चीज़ें बदलना नामुमकिन हो ,उसे स्वीकार करके खुद को बदलने का प्रयास किया जाये। लेकिन जीवन के हर उतार – चढ़ाव को ऐसे जीना चाहिए कि हमारे जीवन का सुकून हमेशा बना रहे।
लेकिन सकारात्मक होने में सबसे बड़ी समस्या हमारी आदत है। हम चाहकर भी अपनी आदतों को छोड़ नहीं पाते है। हमारी आदतें हमारे तन के साथ हमारे मन को भी अपने नियंत्रण में रखती हैं।
बरसों से चली आ रहीं परम्पराओं की भी हमें आदत पड़ जाती है और इसीलिए हम रूढ़िवादी गलत परम्पराओं को भी बदलने के लिए तैयार नहीं होते। हमारी आदतों को हम छोड़ नहीं पाते हैं। कई बार तो हमें पता होता है कि हमारी आदतें हमें तकलीफ पहुंचा रही है लेकिन फिर भी हम अथाह प्रयास के बाद भी अपनी आदत बदल नहीं पाते है।
आखिर ये आदतें क्या है?? और ये कैसे बन जाती हैं ?? हम सिर्फ अच्छी आदतें क्यों नहीं बनाते हैं ?
आदतें क्या है ?
आदतें एक ऐसी अवस्था है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को दर्शाती है। आदतें व्यक्ति के व्यवहार से अकस्मात् (अचानक) ही छलक जाती हैं क्योंकि ये व्यक्ति के व्यक्तित्व में आत्मसात (घुलमिल) हो जाती हैं। इंसान अभिनय द्वारा अपनी आदतों को थोड़ी देर के लिए छुपा सकता है लेकिन अचनाक आयी परिस्थितियों में उसकी असली आदतें उसके व्यवहार में दिख ही जाती हैं।
सरल शब्दों में कहे तो व्यक्ति का व्यवहार उसकी आदतों के अनुरूप ही होता है। व्यक्ति अपनी आदतों का गुलाम होता है। वह चाहकर भी अपनी आदतों को छोड़ नहीं पाता है। थोड़ी देर के लिए भले ही व्यक्ति अपनी आदतों पर नियंत्रण कर लें लेकिन प्रतिकूल परिस्थितियाँ आने पर उसकी असली आदतें उसके व्यवहार में झलक ही जाती है।
आदतें कैसे बन जाती हैं
वह घटनाएँ , व्यवहार , प्रथाएँ , प्रक्रियाएँ तथा संस्कार जो जाने -अनजाने नियमित रूप से व्यक्ति के जीवन में बार बार दोहरायी जाती हैं या वह अपने जीवन में जो कहानियाँ, घटनाओं या प्रथाओं के बारें में बार -बार सुनता है , वह सब व्यक्ति के अंदर इस तरह समां जाता है कि यही सब व्यक्ति के व्यवहार में दिखने लगता है जिसे “आदत” कहा जाता है। अक्सर हम अपने जीवन में कोई कार्य कभी ज़रूरत तो कभी शौक की वज़ह से करना शुरू कर देते हैं , धीरे – धीरे हमें उन चीज़ों की आदत हो जाती है और फिर हम इन आदतों के इस कदर गुलाम हो जाते हैं कि यही आदतें हम सबके जीवन को मुश्किलों से भर देती है।
इसी तरह से नकारात्मकता की आदत भी हमें कब और कैसे पड़ जाती है , हमें पता ही नही चलता है और जब तक पता चलता है तब तक तो हम नकारात्मकता के शिकंजे में बुरी तरह से फँस चुके हैं। सबसे बड़ी बात कि नकारात्मकता का शिकार व्यक्ति ये समझ ही नहीं पाता कि उसकी तकलीफों की वजह वह खुद ही बन चुका है और अगर उसे अपनी तकलीफों से छुटकारा पाना है तो सकारात्मक्ता की शरण लेनी ही पड़ेगी, सकारात्मक नज़रिया को अपने जीवन में अपनाना ही पड़ेगा। जीवन को ख़ुशहाल ,सफ़लता और सुकून के साथ जीने के लिए सकारात्मकता को अपने जीवन में उतारना ही पड़ेगा।
हम चाहकर भी बुरी आदतों को बदल क्यों नहीं पाते
आइये बहुत ही आसान भाषा में ये समझने का प्रयास करते हैं कि हम आदतों के गुलाम क्यों हो जाते है ?? ये जानते हुए भी कि ये आदतें गलत है ,व्यक्ति को नुकसान पहुँचा रहीं हैं फिर भी हम अपनी आदतें नहीं बदल पाते हैं। क्यों ??
दरअसल हम सभी व्यक्तियों के पास चेतन,अवचेतन तथा अचेतन मन होता है।
हमारी आदतें हमारे अवचेतन मन की करामात है। अवचेतन मन के पास सोचने समझने की शक्ति नहीं होती है ,जब कोई घटना या व्यवहार अवचेतन मन के सामने बार -बार दोहरायी जाती है तो अवचेतन मन बिना कुछ सोचे समझे इन व्यवहार को सीख लेता है। चेतन मन को सही गलत की समझ तो होती है लेकिन वह कमज़ोर होता है जबकि अवचेतन मन बहुत शक्तिशाली होता है। जब किसी व्यक्ति को अपनी कोई आदत बदलनी होती है तो चेतन मन उसे बता तो देता है कि ये आदत गलत है , ये तुम्हें नुकसान पहुँचा रही है लेकिन चेतन मन अवचेतन मन से हार जाता है इसलिए व्यक्ति गलत आदतें भी बदलने में असमर्थ होता है।
फिर क्या करें ? हम अपनी नकारात्मक आदतों को कैसे बदले ??लेकिन कैसे ?? क्या ये संभव है ??
नकारात्मकता को सकारात्मकता में ऐसे बदले
जी हाँ , ये सौ प्रतिशत संभव है, बस हमें इसके लिए सकारात्मक होने का अभ्यास तब तक करना पड़ेगा ,जब तक हमें इसकी आदत न पड़ जाये। जब हमें अपनी बुरी आदतें या नकारात्मकता को बदलना हो तो हमें अवचेतन मन की बालपन जैसी भोली प्रवृत्ति का फायदा उठाकर उन आदतों या व्यवहार की पुनरावृत्ति बार – बार अवचेतन मन के सामने करनी चाहिए जो हमें अपने जीवन में चाहिए। जिससे अवचेतन मन पुरानी आदतों की जगह नई ,अच्छी और सकारात्मक बातों या व्यवहार को सीख लेगा और फिर यही सकारात्मकता व्यक्ति की आदत बन जाएगी।
इसी प्रकार नकारात्मकता को भी हम सकारात्मकता में आसानी से निरंतर प्रयास के द्वारा बदल सकते हैं। इसके लिए हमें सबसे पहले उन आदतों की सूची यानी (list) बनानी चाहिए जो आदतें हमें अपने जीवन में चाहिए। जो आदतें नहीं चाहिए उस पर ध्यान देना बंद करना होगा। अवचेतन मन को उसके ही जाल में फसाँ कर उसके दिमाग को नकारात्मक आदतों का खाना खिलाना बंद करना होगा औरअब दिन में कई बार उसे अच्छी सकारात्मक आदतों की खुराक देना शुरू करना होगा। इसके लिए हम सकारात्मक विचारों को एक पेपर में लिखकर रख सकते हैं और इसे दिन में कई बार पढ़ सकते है। रात में सोते समय और सुबह उठते ही सबसे पहले इन विचारों को ज़रूर दोहराना चाहिए क्योंकि रात में अवचेतन मन ज़्यादा सक्रिय हो जाता है तो जो आखिरी विचार सुनकर हम सोते हैं ,वह अवचेतन मन जल्दी सीख लेता है।
इसके लिए हमारे अवचेतन मन के सामने सकारात्मक व्यवहार को कम से कम इक्कीस बार और अधिक से अधिक जब तक अवचेतन मन सकारात्मक व्यवहार अच्छी तरह से सीख न लें ,तब तक दोहराना होगा। धीरे -धीरे निरंतर प्रयास से हमारा अवचेतन मन सकारात्मक व्यवहार को अच्छी तरह सीख लेगा और अब ये व्यक्ति की आदत बन चुकी होगी।
अवचेतन मन तो वही सीखता है जो बार – बार देखता है तो इसका अर्थ ये हुआ कि अगर सकारात्मकता या किसी किसी भी आदत का निरंतर अभ्यास किया जाए तो हम किसी भी आदत को सीख या छोड़ सकते हैं। इस तरह से अवचेतन मन अच्छी या बुरी आदतों को सीखकर उसका गुलाम हो जाता है। इसका अर्थ ये हुआ कि जीवन में कुछ भी सीखना असंभव नहीं है ,बस इसके लिए हमें सबसे पहले अपनी परिस्थितियों को स्वीकार करके निरंतर प्रयास करना होगा। क्योंकि
“करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान “
Read my blog post http://KARAT KARAT ABHYAS KE JADMATI HOT SUJAN IN HINDI
Ye padh kar bohot acha laga