सफल लोगों की असफलता की कहानी । इस दुनिया का सबसे आकर्षक शब्द अगर कोई है तो वह है “सफलता “। हर व्यक्ति अपने जीवन के हर पड़ाव में सफल होना चाहता है। सफलता की कहानी लिखने के लिए लोगों ने अपना पूरा जीवन असफलता में बिताया होता है। इतिहास गवाह है कि सफलता त्याग मांँगती है, अनुशासन मांँगती है। जिस जिस ने भी सफलता का स्वाद चखा है ,उसने असफलता का स्वाद उससे भी ज्यादा चखा हुआ होता है।

शायद ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जिसने अपने जीवन में असफलता देखे बिना सफलता का स्वाद चखा होगा।

ये निश्चित है कि सफल होना है तो असफलता की सीढ़ियाँ चढ़नी ही होगी।

जब तक हम अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रयास करते रहते है , हम असफल नहीं हैं। भले ही हमें सफलता मिले या न मिले।

थॉमस एडिसन ने बिजली का अविष्कार करने के लिए दस हज़ार बार प्रयास किया था। दस हज़ारवें प्रयास में उन्हें सफलता मिली और वे बिजली का अविष्कार करने में सफल हो गए तो क्या हम एडिसन द्वारा किए गए 9999 प्रयास के कारण एडिसन को असफल कहेंगे ?

नहीं ! एडिसन 9999 बार असफल प्रयास करने के पश्चात् ही सफलता के लक्ष्य तक पहुँच पाए थे क्योंकि बार – बार असफल होने के बावजूद उन्होंने प्रयास करना बंद नहीं किया था।

सफल होने के लिए असफलता की दर बढ़ानी होगी मतलब बार बार प्रयास करना होगा क्योंकि “करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान” इसीलिए

यह सीरीज लिखने के पीछे मेरा मकसद यह है कि जब हम असफलता से हार जाते हैं तो हमें यह सब चीज जानने की जरूरत है कि सफल होने का पड़ाव असफलता से होकर ही गुजरता है सफलता यूं ही नहीं हासिल हो जाया करती है उसके लिए हमें हर दिन असफलताओं की सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं तब कहीं जाकर हम सफलता की मंजिल पर पहुँचते हैं तो जब तक हम सफल नहीं हो जाते तब तक हमें प्रयास करते रहना है और सफल होने की कोशिश करते रहनी चाहिए।असफल होते रहिए, लेकिन प्रयास मत बंद कीजिए। एक दिन सफलता जरूर आपके कदम चूमेगी।

विल्मा रुडोल्फ का जन्म 23 जून 1940 में टेनेसी, अमेरिका के एक गरीब परिवार में हुआ था। आप सभी जानते हैं कि विल्मा रुडोल्फ एक ही ओलंपिक में तीन ट्रैक एंड फील्ड स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली अमेरिका महिला थी।

इन्होंने एक अद्भुत सफलता का स्वाद चखा लेकिन जब हम उनकी कहानी जानेंगे तब हमें पता लगेगा कि उन्होंने कितनी तकलीफें सही है, कितना संघर्ष किया है इस सफलता के लिए, तब कहीं जाकर वे अपने जीवन के सपनों को पूरा करने में सफल हो पायी और सफलता की अद्भुत और असंभव लगने वाली कहानी लिखने में सफलता हासिल की ।

बीमारी

विल्मा रुडोल्फ जब 4 साल की थी तो उन्हें डबल निमोनिया और काला बुखार हो गया था और इसकी वजह से उन्हें पोलियो भी हो गया। वह पैरों को सहारा देने वाला ब्रेस पहना करती थी। डॉक्टर ने बोल दिया था कि वह चल- फिर नहीं पाएँगी लेकिन विल्मा की मां ने उनकी बहुत हिम्मत बधाई और विल्मा से कहा कि अगर वे ईश्वर की दी हुई क्षमता ,मेहनत और लगन से काम करेंगी तो वह अपने जीवन में अपने हर लक्ष्य को प्राप्त कर पाएँगी।

बीमार विल्मा थोड़ी निराशा थी। उसने अपनी माँ से पूछा, माँ ! मैं इस दुनिया की सबसे तेज धाविका बनना चाहती हूँ। मैं कैसे बनूँ ? उसकी माँ ने कहा- बेटा तुम जरूर बन सकती हो। अपनी इच्छा शक्ति को दृढ़ इच्छा शक्ति में बदल दो। तुम्हें तुम्हारे लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए भगवान भी तुम्हें अपना आशीर्वाद जरूर देंगे।

माँ की इस बात से विल्मा रुडोल्फ में इच्छा शक्ति इतनी तीव्र हो चुकी थी कि 9 साल की उम्र में डॉक्टर के मना करने के बावजूद विल्मा ने अपने पैरों से ब्रेस को उतार कर फेंक दिया जबकि डॉक्टर ने कहा था कि वह कभी चल नहीं पाएँगी।

हम सब तो अनुमान भी नहीं लगा सकते कि विल्मा ने इतनी छोटी सी उम्र में कितना दर्द सहा होगा। 13 साल की होने पर उन्होंने अपनी पहले दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और सबसे पीछे रही। उसके बाद दूसरी ,तीसरी ,चौथी और ना जाने कितनी प्रतियोगिताओं में उन्होंने हिस्सा लिया और आखिरी स्थान पर आती रही लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी वह कोशिश करती रही और तब तक करती रही जब तक कि वह फर्स्ट नहीं आ गई।

15 साल की उम्र में विल्मा ऐड टेंपल नाम के कोच से मिली। विल्मा ने अपनी ख्वाहिश बताई कि मैं इस दुनिया की सबसे तेज धाविका बनना चाहती हूँ। तब टेंपल ने कहा कि तुम्हारी इच्छा शक्ति इतनी मज़बूत है कि तुम्हें तुम्हारे लक्ष्य तक पहुँचने से कोई भी नहीं रोक सकता और इस कार्य में मैं तुम्हारी मदद जरूर करूँगा।

फिर टेंपल के मार्गदर्शन में विल्मा ने अभ्यास करना शुरू किया। आखिर वह दिन आया जब विल्मा ने ओलंपिक में हिस्सा लिया। ओलंपिक में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में मुकाबला होता है यहाँ पर विल्मा का मुकाबला जुत्ता हैन नामक तेज धाविका से होना था जिसे कोई भी हरा नहीं पाया था। सबसे पहले दौड़ 100 मीटर की थी। इस पहली दौड़ में विल्मा ने जुत्ता हैन को हराकर अपना पहला गोल्ड मेडल जीता। फिर उसके बाद दूसरी दौड़ 200 मीटर की थी , इसमें भी जुत्ता को हराकर अपना दूसरा गोल्ड मेडल जीता। इसके बाद तीसरी दौड़ 400 मीटर की रिले रेस थी और इस रेस में विल्मा का मुकाबला फिर से जुत्ता से ही था। रिले रेस का आखिरी हिस्सा टीम का सबसे तेज एथलीट ही दौड़ता है इसलिए विल्मा और जूत्ता दोनों को अपनी अपनी टीमों के लिए दौड़ के आखिरी हिस्से में दौड़ना था। विल्मा की टीम के तीन लोग रिले रेस की शुरुआती तीन हिस्से में दौड़े और आसानी से बेटन बदली लेकिन जब विल्मा के दौड़ने की बारी आई तो उसके हाथ से बेटन छूट गई।

विल्मा 1 मिनट के लिए चकित हो गई, क्या करूँ ? अचानक उसने देखा कि दूसरे छोर से जुत्ता तेज़ी से दौड़ती चली आ रही है। विल्मा ने अब आव देखा ना ताव , तुरंत ही गिरी हुई बेटन उठाई और बिजली की सी फुर्ती से इस तरह दौड़ी कि जुत्ता को तीसरी बार भी हराया और अपना तीसरा गोल्ड मेडल जीत कर इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज़ कराकर हमेशा के लिए अमर हो गई और साथ ही करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई।

यह बात चारों दिशा में खुशबू की तरह फ़ैल गई कि एक लकवा ग्रस्त महिला 1960 के ओलंपिक में दुनिया की सबसे तेज धाविका बन चुकी थी।

तो हमें यह बात समझने की है कि सफलता और कामयाबी यूँ ही नहीं मिला करती है। उसके लिए बरसों तपस्या करनी पड़ती है, बरसों प्रयास करने पड़ते हैं, और बरसों असफल होना पड़ता है, तब कहीं जाकर सफलता से मुलाक़ात होती है। असफलता के बाद ही सफलता का स्वाद चखने को मिलता है इसलिए जब तक सफलता न मिल जाए ,असफल होते रहिए, लेकिन प्रयास करना मत बंद कीजिए। सफलता एक दिन खुद आपके सामने आकर खड़ी हो जाएगी। इतिहास गवाह है कि जिसने जिसने भी असफल होना नहीं छोड़ा सिर्फ उसी ने सफलता का स्वाद चखा है।

जल्दी ही मिलते हैं सफल लोगों की असफलता की कहानी सीरीज़ की दूसरी कहानी के साथ।

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