ladka ladki aik samaan par essay[निबंध] article[लेख], speech [भाषण]

लड़का लड़की एक समान [ ladka ladki aik samaan]
लड़का लड़की दोनों ईश्वर द्वारा प्रदत्त एक बहुमूल्य उपहार है। दोनों एक समान होते है। ईश्वर दोनों के निर्माण से लेकर जन्म देने की प्रक्रिया तक में कोई भेद – भाव नहीं करते है लेकिन ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम इंसान लड़का और लड़की को एक समान नहीं समझते है। बच्चे ईश्वर का वरदान होते है जिनके जन्म पर परिवारों में ढेर सारी खुशियाँ मनायी जाती है लेकिन अधिकांश घरों में आज भी ये खुशियाँ इस बात पर निर्भर करती है कि जन्म किसका हुआ है लड़का या लड़की का ….. अर्थात घर में लड़का हुआ तो खुशियाँ और लड़की हुई तो लोग दुःख में डूब जाते हैं- यह हमारे समाज का बेहद दुखद पहलू है और इस विचारधारा का बदलना बहुत ही आवश्यक है।
लड़का और लड़की दोनों एक समान होते हैं। लड़कियों के बिना तो समाज का अस्तित्व ही नहीं है लेकिन फिर भी लड़कियों को लड़कों के बराबर नहीं समझा जाता है। शहरी क्षेत्रों में तो हालात थोड़ा सुधर भी रहे हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों को लड़कों के बराबर समझना तो दूर उन्हें तो इंसान भी नहीं समझा जाता हैं तो अब इस सोच की बहुत ज्यादा आवश्यकता है कि लड़का लड़की दोनों एक समान होते हैं।
इस सोच की आवश्यकता क्यों [is soch ki aawshykta kyon]
लड़का और लड़की दोनों एक समान होते हैं। बिना लड़कियों के तो समाज का अस्तित्व ही नहीं है लेकिन फिर भी लड़कियों को लड़कों के बराबर नहीं समझा जाता है परन्तु अब ज़माना बदल रहा है। हमारा देश भी विकास कर रहा है तो अब इस सोच की बहुत ज्यादा आवश्यकता है कि लड़का लड़की दोनों एक समान होते हैं।

जीवन के कई क्षेत्र जैसे – शिक्षा ,खेल-कूद , घर के कार्य, खाना बनाना ,नौकरी करना ,विवाह [दहेज़ प्रथा ]आदि में लड़के और लड़कियों में व्याप्त असमानता दिख ही जाती है। हद तो तब हो जाती है जब लड़कियों को भ्रूण में ही मार दिया जाता है। सिर्फ त्याग और बलिदान के क्षेत्र में ही लड़कियों को बहुत अवसर प्रदान किये जाते है । स्वयं के माता – पिता भी अपने बेटे तथा बेटी के पालन -पोषण में भेदभाव करते हैं। इसलिए लड़का और लड़की को समान समझने की सोच को विकसित करना बहुत आवश्यक है ।
हमारे समाज में लड़कों को लड़कियों पर राज करने तथा लड़कियों को लड़कों की सेवा करने के हिसाब से परवरिश दी जाती है। शिक्षा जैसी बुनियादी ज़रूरतें भी बहुत सारी लड़कियों की पूरी नहीं होती है। अगर किसी घर में आर्थिक तंगी हो तो लड़कों को जैसे तैसे पढ़ा दिया जाता है और लड़की को इस शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया जाता हैं। बेटियाँ पढ़ने में कितनी ही अच्छी क्यों न हो , उन्हें ही अपनी पढाई छोड़ने के लिए बाध्य किया जाता है।
अब मानवीय संवेदना तथा इंसानियत के आधार पर भी लड़का और लड़की को हर क्षेत्र में समान अधिकार मिलना ही चाहिए। धीरे धीरे समाज में लड़कियाँ आत्मनिर्भर हो रही है और लड़कों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है लेकिन आज भी देश में बहुत सारी लड़कियाँ ऐसी भी हैं जिनको लड़कों के साथ कदम मिलाना तो दूर उनके सामने कदम उठाने की भी इजाज़त नहीं मिलती वे आज भी घुटन तथा गुलामी भरा जीवन जीने के लिए मजबूर की जाती हैं।
लड़कियों को बढ़ावा कैसे
“लड़का लड़की को एक समान” बनाने के लिए कई कदम उठाये जा सकते हैं –

१. लड़कियों के लिए शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिए जिससे वे अपने अस्तित्व को समझने के योग्य बने और स्वयं पर गर्व करना सीखे जिससे लड़की होकर दूसरी लड़की का जीवन तबाह न करें तथा कन्या जन्म को उत्सव की तरह मनाने की परंपरा की शुरुआत करें। माताएँ समाज की सबसे ताक़तवर प्राणी है। वे जैसा चाहे वैसा समाज बनाने में सक्षम हैं। उन्हें अपने लिए किसी के सामने हाथ फैलाने की ज़रूरत नहीं है बल्कि सिर्फ जागरूक होने की आवश्यकता है। लड़कियों को आपस में एकजुट होकर अपने ख़ुशी तथा विकास के लिए ज़रूरी कदम उठाने चाहिए।
२. लड़कियों की सुरक्षा व्यवस्था के लिए कड़े कदम उठाये जाने चाहिए। लड़कियों की बेइज़्ज़ती करने वालों को इतना कड़ा दंड दिया जाना चाहिए कि लड़कियों के साथ गलत करने के नाम से भी उनकी रूह काँप जाये।
३. लड़कों के नैतिक तथा चारित्रिक विकास पर उनके बचपन से ही विशेष ध्यान देना होगा जिससे लड़के लड़कियों की इज़्जत करना सीखे।
४. लड़कियों को खुद से प्यार करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए जिससे वे स्वयं का दर्द ,इच्छाओं तथा संवेदनाओं को भी महसूस करना सीखें और उन्हें दूर करने का प्रयास कर सकें।
५. गलत परम्पराओं में जकड़े होने के कारण लड़कियाँ लड़कियों के प्रति कठोर होती हैं , वे स्वयं दुःख सहती है और दूसरी लड़कियों को दुःख सहने के लिए मजबूर करती हैं। अगर लड़कियों को लड़कों के समान अधिकार चाहिए तो सबसे पहले तो इन्हें ही बदलना होगा क्योंकि लड़कियाँ जननी है ये जैसा चाहे वैसे ही युग का निर्माण कर सकती हैं अपने बच्चों को सही परवरिश देकर।
६. भ्रूण हत्या के दोषियों के लिये सख्त सज़ा का प्रावधान होना चाहिए। साथ ही लड़कियों को अपनी महिला जाति की सुरक्षा ,सम्मान ,अधिकार के लिए जागरूक तथा एकजुट होने की सख्त आवश्यकता है क्योंकि जब तक लड़कियों में खुद का जीवन सुधारने की इच्छा नहीं होगी तब तक इन्हें लड़कों के समान अधिकार नहीं प्राप्त हो सकते हैं।
७. दहेज़ प्रथा का सख़्त विरोध होना चाहिए क्योंकि ये प्रथा लड़कियों के आत्मसम्मान पर गहरी चोट है जो उनके महत्व को शून्य करती है। दूसरी बात विवाह दो लोगों के बीच में सर्व-सहमति से बनने वाला रिश्ता है , दोनों पक्षों की ज़रूरत होती है तो यहाँ दहेज़ लेने या देने का क्या औचित्य है।
हमारे समाज में होने वाली घटनाओं को देखते हुए ये भी कह सकते है कि लड़के, और उसके घर वालों को बहू नहीं बल्कि मुफ्त की नौकरानी की आवश्यकता ज्यादा होती है और वे इसके लिए दहेज़ देकर नहीं बल्कि दहेज़ लेकर लड़की को अपनी नौकरानी बनाकर एहसान करते हैं और अगर लड़की वाले दहेज़ की माँग पूरी नहीं कर पाते हैं तो कई घरों में लड़की को ज़िंदा जलाकर मार देने की घटना भी देखी गयी है। इसलिए इस घृणित प्रथा को रोकने के लिए बने कानून का सख्ती से पालन होना चाहिए।
८. ये सोच कि “लड़कियाँ सिर्फ घर के कार्य अच्छे से कर सकती हैं” को बदलने की ज़रूरत शहर के साथ-साथ गॉंव में ज्यादा है। लड़कियों ने हर क्षेत्र में श्रेष्ठ प्रदर्शन करके ये साबित कर दिया है कि वे हर क्षेत्र में अपनी काबिलियत का झंडा फहराने में सक्षम है।
९. लिंग के आधार पर काम का बँटवारा करना बंद करना होगा। रसोई के काम, सफ़ाई तथा बच्चों के काम आदि पर तो जैसे लड़कियों का नाम ही लिख दिया गया है। आज लड़कियाँ लड़कों की तरह नौकरी भी करती हैं फिर भी आज भी घर के सारे काम का दायित्व उनके ऊपर ही रहता है। काम ख़त्म करने के बाद ही वे नौकरी को जाती हैं और घर वापस लौटते ही फिर रसोई में जुट जाती हैं। सामर्थ्य से अधिक कार्य करने के कारण उनका स्वास्थ्य ख़राब हो जाता हैं।
१०. लड़कियों को अपनी संपत्ति समझने वाली सोच को बदलना होगा। उन्हें अपनी ज़िंदगी के बारे में भी फैसला लेने का हक़ नहीं दिया जाता है। वे जब भी अपना कोई सपना पूरा करना चाहती है तो उन्हें कुछ शर्तों में बाँध दिया जाता है। जैसे – नौकरी करनी है तो घर पर उसका प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। घर के सारे काम करके ही नौकरी पर जाओगी और आने के बाद फिर से सारे काम तुम्हें ही करने होंगे और वह बेचारी मशीन बनकर इस डर से सारे काम करती है कि कहीं उसके सपने कोई छीन ना ले।
११. सबसे महत्वपूर्ण कदम कि उन्हें देवी बनाकर सारे त्याग की उम्मीद करना बंद करना होगा। उन्हें इंसान की श्रेणी में रखकर उनकी भावनाओं को सम्मान दिया जाये तो लड़कियों का जीवन ज्यादा बेहतर होगा।
लड़कियों को त्याग की मूर्ति तथा देवी कहकर उनसे सारे कार्य तथा त्याग करवाये जाते हैं और उन्हें गुलाम समझकर उनके साथ नौकरानियों से भी बदतर व्यवहार किया जाता है। बहू को लक्ष्मी कहकर नौकरानी की तरह उससे अपने घर का सारा काम करवाते हैं , खाना बनवाते है और सबके खाने के बाद अंत में उसी के द्वारा बनाये खाने में से बचा खुचा उसे खाने को देते हैं।
इतना ही नहीं जिस घर की दुहाई देकर उसको उसके सारे फर्ज़ प्रतिदिन याद दिलाये जाते हैं और उससे उसके सारे सुख ,इच्छाओं तथा सपनों का गला घोंटने के लिए मजबूर किया जाता है, वह घर का मालिकाना हक़ उस लड़की को कभी नहीं मिलता। अगर कभी उसे पति को छोड़ना पड़ जाये तो उसे वह घर भी छोड़ना पड़ता है।
लड़कियों द्वारा किये हुए त्याग और तपस्या का मूल्य बहुत कम लोगों को होता है। कई बार तो उसके स्वयं के माता -पिता भी उसे दुख सहने के लिए मजबूर करते है। लड़की के माता -पिता तब तक खुश रहते है जब तक लड़की ससुराल में रहती है भले ही वह बहुत तकलीफ़ में हो, लेकिन जैसे ही वह अपने दुखों को दूर करने का प्रयास करती है और ससुराल छोड़ कर मायके वापस आ जाती है, माता पिता दुखी हो जाते हैं। कई बार वे अपनी लड़की की खुशियों से ज़्यादा महत्व समाज के झूठे रीति-रिवाजों को देते हैं और इसके लिए भी अपनी बेटी से उसकी खुशियों का बलिदान माँगते है और ये बलिदान माँगने वालों में भी एक लड़की यानी उसकी माँ भी सम्मिलित होती है और इस तरह से बरसों से लड़कियों को बलिदान देने तथा लड़कियों से बलिदान देने की प्रथा बन गयी है।
क्या किसी भी देवी के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है ?? देवी को तो हम घर में सबसे ऊँचा स्थान देते हैं। घर में कुछ भी खाना बने, पहला भोग उन्हें ही लगाते हैं।
लड़कियों को देवी बनने का शौक नहीं है, उन्हें इंसान समझा जाये। उन्हें भी लड़कों के समान अपनी खुशियाँ चुनने तथा अपने सपनों में रंग भरने का अधिकार दिया जाये, उनकी ज़िंदगी बहुत खूबसूरत हो जाएगी।
१२. सरकार क़ानून बनाती है लेकिन उसका पालन करवाने के लिए भी थोड़ा सख्ती होनी चाहिए। जो भी योजनाएँ लड़कियों के लिए बनायी जाती है उसको सही ढंग से कार्यान्वित करने के लिए कुछ ईमानदार लोगों की टीम बनायी जानी चाहिए जो ये जाँच करें कि योजनाएँ का लाभ मिल रहा है कि नहीं। समय समय पर योजनाओं की जाँच होती रहनी चाहिए और उसमें ज़रूरी सुधार होते रहना चाहिए। सादी वर्दी में पुलिस घूमनी चाहिए जो लड़कियों की सुरक्षा – व्यवस्था को और सुदृढ़ करें और इस व्यवस्था पर भी नज़र रखने के लिए कुछ अफ़सरों की टीम बनायी जानी चाहिए जो समय समय पर अकस्मात् निरीक्षण करके लड़कियों के हित संबंधी निर्णय लेने में सक्षम हो।
देश -समाज पर प्रभाव , सुझाव [ Desh -samaj par prabhav, sujhav]

अगर देश में लड़के और लड़कियों को समान समझा जाने लगा तो हर घर खुशहाल होगा। दादी , माँ ,बहन , पत्नी , बेटी तथा बहू सभी के चेहरे पर मुस्कान होगी जिससे एक खुशहाल ,विकसित तथा संतुष्ट देश तथा समाज का निर्माण होगा। पारिवारिक ,सामाजिक ,आर्थिक ,भावनात्मक तथा धार्मिक सभी तरह से संतुष्ट लोगों द्वारा एक मजबूत राष्ट्र की स्थापना होगी जहाँ लड़के तथा लड़कियाँ मिलकर एक उज्जवल समाज का निर्माण करेंगे।
हम सबको मिलकर शीघ्र से शीघ्र एक उत्कृष्ट समाज की स्थापना हेतु लड़का लड़की एक समान के सिद्धांत को पूरे देश में लागू करने के लिए जागरूकता ,यथा सुधार कार्यक्रम तथा योजनाएँ चलानी चाहिए।
“लड़की पढ़ेगी तो देश उन्नत बनेगा
लड़की हँसेगी तो देश ख़ुशहाल बनेगा”
इसलिए देश को बनाना हो उन्नत और ख़ुशहाल
तो लड़कियों को दो समानता का अधिकार ।”
This is truly insightful. It succinctly highlights the imperative of gender equality and unity .
Hats off to you ma’am 😇. You are great writer ✍️.
Our country have been developed in technology. But most of people are still having same thoughts about Girls and Boys. They still make a difference between them. I don’t want to talk about forefathers and ancestors. New generations also think like even before.
This article is Praiseful ma’am. 😇🙏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👍🏻
💯 correct