द्रौपदी

 महिलायें शक्तिशाली हैं या बेचारी ! ये सवाल मेरे मन को जवाबों से भर देता है। जब भी शक्ति की बात हो तो देवियों का ही नाम याद आता है – माँ दुर्गा , माँ काली, माँ पार्वती , धन की बात हो तो माँ लक्ष्मी, बुद्धि की बात हो तो माँ सरस्वती। धन धान्य की बात हो तो माँ अन्नपूर्णा। इतिहास साक्षी है कि हमारे भगवान भी शक्ति के लिए देवी माँ की आराधना करते है इसीलिए महिलाएँ देवी अथवा शक्ति का रूप मानी जाती है।

वहीं दूसरी ओर प्रतिदिन महिलायें के ऊपर होने वाले अत्याचार से महिलाओं की बेबसी का पता चलता है।

महिलाओं का शक्तिशाली रूप   : powerful perspective of Women

सनातन धर्म में तो हमेशा से औरतों अर्थात नारी शक्ति के आदर तथा सम्मान की ही बात कही गयी है। उन्हें देवी के समान मान देने की बात भी कही गयी है। प्राचीन काल में पूजा में अगर घर की महिलायें पुरुषों के साथ न बैठे तो पूजा सम्पूर्ण नहीं मानी जाती थी। पुरुषों के समान महिलाओं को भी समान शिक्षा का अधिकार था। पुत्र तथा पुत्री अपनी माँ के नाम से भी पहचाने जाते थे। जैसे भीष्म पितामह गंगा पुत्र, पांडव कुंती पुत्र या माद्री पुत्र , कर्ण राधेय तथा हम सबके प्रभु कृष्ण यशोदा तथा देवकी नंदन के नाम से विख्यात हुए। 

माँ सीता ,अहिल्या, द्रौपदी और न जाने कितने नाम हैं जिन्होंने त्याग, और समर्पण को आधार बनाकर अपना पूरा जीवन दुःख और तकलीफ में बिता दिया। वहीं जब इन महिलाओं ने अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठायी तो इतिहास बदल गया और इन महिलाओं का नाम इतिहास में अमर हो गया। 

इतिहास ऐसी महिलाओं की वीर गाथा से भी भरा हुआ है जिन्होंने युद्ध भूमि में दुश्मनों को धूल चटा दी। वहीं रानी लक्ष्मी बाई ,पदमावती ,कैकेयी जैसी अनगिनत महिलाओं ने देश की आन बचाने के लिए खुद की जान देश के नाम कर दी और ज़रूरत पड़ने पर अपनी आन बचाने के लिए जलती अग्नि में खुद को समर्पित करके जौहर कर लिया। 

तो वहीं अहिल्या बाई होलकर ने शिक्षा का अधिकार पाने के लिए बहुत संघर्ष किया और अपने ज्ञान तथा शक्ति का प्रयोग समाज हित के लिए किया। दूसरी ओर मदर टेरेसा भी भावनात्मक रूप से बहुत शक्तिशाली थी ,साथ ही बहुत ममतामयी भी। इन्होंने ने भी अपना सारा जीवन समाज कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। 

पन्ना धाय बहुत शक्तिशाली , वीर तथा कर्तव्यनिष्ठ महिला थी ,इन्होंने तो देश के लिए अपने पुत्र की ही बलि दे दी थी। हांडा रानी , शकुन्तला, गार्गी, सावित्री, बछेंद्री पाल जैसी अनगिनत महिलाएँ हैं जिन्होंने अपनी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक, भावनात्मक तथा अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करके ये सन्देश समाज को दिया है कि महिलाओं की शक्ति असीमित है। 

तो फिर महिलायें शक्तिशाली से कमज़ोर और बेबस कैसे हो गयी ? Then How Did Women Become Weak And Helpless

* ऐसा लगता है कि महिलाओं की सहनशीलता और क्षमाशील होने की प्रवृति ने महिलाओं को कमज़ोर कर दिया। हर दुःख और तकलीफ को सह जाना , किसी से शिकायत न करना ,महानता की देवी बनकर रहने में शायद उन्हें आनंद आने लगा। घर को जोड़ने तथा सँभालने की सारी ज़िम्मेदारी महिलायें अपने ऊपर लेती चली गयी और धीरे- धीरे ये ज़िम्मेदारी उनके ऊपर थोप दी गयी और महिलाएँ ये काम करने के लिए बेबस हो गयीं, चाहे उनकी ये काम करने की इच्छा हो या नही। 

* पुरुषों के प्रति अत्यधिक उदारवादी नज़रिया ने इनको शक्तिशाली से शक्तिहीन और बेचारी की श्रेणी में पहुँचा दिया। महिलाओं ने अपनी महत्ता को नकार दिया। इतना ही नहीं जो औरतें खुद की महत्ता को ज़िंदा रखना चाहती थीं, उनको भी पुरुषों की गुलामी करने के लिए मजबूर किया।

* अशिक्षा भी बहुत बड़ा कारण है महिलाओं को कमज़ोर करने में। अशिक्षा के कारण महिलाओं को अपनी शक्ति का एहसास नहीं हो पाता और वे अपनी योग्यता को निखार भी नहीं पाती हैं। अशिक्षा के कारण ही महिलाओं के दिमाग में ये बात भर दी गई कि वे शारीरिक तथा मानसिक रूप से बहुत कमज़ोर हैं। वे पुरुषों के सहारे के बिना अपना जीवन निर्वाह नहीं कर सकती और महिलाओं ने ये बात मान ली और अब वे पीढ़ी दर पीढ़ी इस मिथ्या बात का प्रचार करके आने वाली पीढ़ी को भी कमज़ोर कर रही हैं। साथ ही पुरुष समाज ने भी ये बात अच्छे से समझ ली है कि महिला वर्ग अशिक्षित व कमज़ोर है इसलिए उनसे  अपनी सेवा करवायी जा सकती है और इस काम की ज़िम्मेदारी भी महिलाओं को ही दे दी गई और अशिक्षित महिला अपने ही प्रति क्रूर होती चली गई और “महिलायें ही महिलाओं की दुश्मन हैं “इस बात को सच करने में लगी हुई हैं। 

* महिलाओं का पालन-पोषण जिस ढंग से किया जाता है , वह भी एक कारण है इन्हें कमज़ोर करने का। कई परिवारों में लड़के और लड़कियों के पालन -पोषण में भेदभाव किया जाता है। सारी सुख -सुविधाओं का प्रथम अधिकारी पुरुषों को माना जाता है और इस तरह के पालन -पोषण का हिस्सा महिलायें भी हैं। 

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