बेलगाम सोच की लगाम कैसे कसे???
बेलगाम सोच की लगाम कैसे कसे …

आजकल एक शब्द बहुत ज्यादा प्रचलित है – ANXIETY
गाँव हो ,शहर हो, बच्चा हो, बूढ़ा हो – हर एक व्यक्ति के मुँह पर ये शब्द आम हो गया है। आखिर anxiety है क्या ?
anxiety meaning in hindi क्या है ? हम यहाँ हिंदी में ANXIETY को समझने का प्रयास करेंगे। Anxiety को हिंदी में चिंता कहते हैं और चिंता मतलब किसी चीज़ या वस्तु के बारे में अत्यधिक सोचना। कई बार ये चिंता ऐसी घटनाओं या डर को लेकर होता है जिस पर हमारा वश नहीं होता है या फिर वह डर कभी वास्तविकता में बदलता ही नहीं हैं लेकिन फिर भी हम न चाहते हुए भी उन घटनाओं के बारे में सोचने को विवश होते हैं। आजकल अधिकांश व्यक्ति इस समस्या से ग्रसित होकर अपने जीवन को दुःख, तकलीफ तथा निराशा के समुद्र में डुबो चुका है।
अभी कुछ दिनों पहले मेरी एक व्यक्ति से बात हुई तो मुझे पता चला कि वे भी इसी समस्या से जूझ रहे हैं जो बहुत ज्यादा सोचते हैं। मतलब की उनके जीवन में कुछ भी घटना हो जाये या किसी से कुछ वाद-विवाद हो जाये तो वे उस विषय पर बहुत ज्यादा सोचते है। वे उस घटना को आसानी से भुला नहीं पाते है और उसका भविष्य में परिणाम क्या होगा ? इसी में उलझ जाते हैं जिससे मानसिक तनाव तथा शारीरिक अस्वस्थता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
चिंता का स्वरूप : जो जीवन को मुश्किल बना देता हैं –Anxiety

चिंता शायद हम सबके जीवन में घटने वाली ये सबसे बड़ी तथा आम समस्या है कि हर बात या घटना या काम के परिणाम अर्थात भविष्य को लेकर हम बहुत चिंतित होते हैं। इतना ही नहीं, अतीत में हुई किसी घटना के बारे में भी इतना अधिक सोचते हैं जिसे ठीक करना अब हमारे वश में नहीं है। नतीजा ये होता है कि हमारा मन परेशान रहने लगता है। दुःख, चिंता, कुंठा तथा निराशा में मन इतना ज्यादा डूब जाता है कि हमारे मन से हमारा नियंत्रण चला जाता है और मन के अधीन होकर हम अपने जीवन में वे सारे दुःख झेल लेते हैं जो वास्तव में कभी थे ही नहीं। हैं ना ये हास्यापद !
लेकिन यकीन मानिये हम सब अपने जीवन में हर दिन वही सारे दुःखों की वजह से ज्यादा मुश्किलों में हैं जो कभी थे ही नहीं और भविष्य में भी कभी शायद आएंगे नहीं लेकिन अत्यधिक सोचने की आदत के कारण हम अपने जीवन में वह सारे दुःख झेल लेते है, फिर इन मानसिक समस्याओं का एक और विकराल रूप शुरू होता है जब हमारा शरीर भी इनकी गिरफ्त में आ जाता है। हमारे शरीर में बीमारियों के लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं और अब हम और ज्यादा विवश तथा बेचारे बन चुके होते हैं। शरीर ,मन तथा बुद्धि तीनों मिलकर हमारा जीना मुश्किल कर देते हैं।
ये सारे दुःख हमने सिर्फ अपनी अत्यधिक सोच की आदत के कारण सहा है क्योंकि हमारे मन को नहीं पता होता है कि दुःख हकीकत में घटित हुआ है या ये सिर्फ हमारी कल्पना है ,लेकिन दोनों ही स्थिति में शरीर तथा मन को एक समान ही दर्द तथा हानि पहुँचती है।
चिंता की आदत क्यों हो जाती है –Anxiety
१. कुछ आदतें या व्यवहार तो हम लेकर ही जन्म लेते हैं।
२. सामाजिक पर्यावरण अर्थात हमारे माता -पिता तथा आस-पास के लोगों के स्वभाव का भी हमारे ऊपर पड़ता है।
३. कभी हम अनजाने या कभी जानबूझकर भी कुछ ऐसे व्यवहार को रोज़ रोज़ दोहराते हैं जिससे कुछ समय के पश्चात हमें ऐसे व्यवहार की आदत हो जाती है जिससे हम खुद भी आसानी से बाहर नहीं निकल न पाते हैं इसलिए कोई भी गलत कार्य पहली बार भी शुरू मत कीजिये जो आगे जाकर हमारे लिए ही समस्या बन जाये क्योंकि व्यक्ति आदतों का गुलाम होता है।
४. डर तथा असुरक्षा की भावना के कारण भी अत्यधिक चिंता को बल मिलता है।
५. किसी भी वस्तु या व्यक्ति से अत्यधिक प्यार भी हमें चिंता की अवस्था में लाकर खड़ा कर देता है।
६. ज़िम्मेदारी की भावना भी चिंता करने के लिए मजबूर कर देती है।
७. शारीरिक तथा मानसिक अस्वस्थता के कारण भी चिंता होने लगती है।
आम समस्याएँ जो हमारे जीवन को मुश्किल बना देती हैं : अत्यधिक चिंता से उत्पन्न होने वाली समस्याएँ
८. कभी तो चिंता का कारण हमारे आस-पास का खतरनाक वातावरण भी होता है।
९. मनुष्य स्वयं ही अपने सारे कार्यों का दायित्व उठा लेता है तथा अच्छे या बुरे कार्यों के लिए खुद को ही ज़िम्मेदार भी मानने लगता है। वह भूल जाता है कि एक शक्ति है जो हम सबकी चिंता करने के लिए है। इसलिए जहाँ अपना वश न चले उस कार्य को ईश्वर को समर्पित कर दें।
(जो लोग ईश्वर पर विश्वास नहीं करते हैं , वे लोग अपने विश्वास के अनुसार किसी भी शक्ति को खुद को समर्पित करके देखें बहुत सुकून आ जाता है जीवन में। वैसे भी जो चीज़ अपने वश में नहीं वहाँ हम कितना भी चिंता करें ,समाधान नहीं आने वाला है तो बेहतर है कि मेहनत करें और बाकी सब उस ईश्वर पर छोड़ दें। )
अत्यधिक चिंता की आदत के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याएँ

चिंता करने की आदत की वजह से हम जीवन जीने की बजाय काटना शुरू कर देते हैं। जीवन बोझ समान प्रतीत होने लगता हैं। हम अपने आसपास की वस्तुओं का आनंद लेना बंद कर देते हैं। हमें अब प्रकृति की खूबसूरती ख़ुशी नहीं देती। आसपास के लोगों की बातों में भी कोई रस नहीं आता। संक्षेप में कहे तो किसी भी कार्य को करने में मन नहीं लगता है। मन बेचैन रहता है। सबसे महत्वपूर्ण लक्षण कि उसकी सोचने समझने की शक्ति भी कम हो जाती हैं। वह व्यक्ति किसी की सलाह भी मानना नहीं चाहता। ऐसा व्यक्ति सिर्फ मैं में सिमट जाता है उसे सिर्फ खुद की हर दुःख या तकलीफें दिखायी देती है। ऐसे व्यक्ति थोड़े स्वार्थी हो जाते हैं इन्हें दूसरों की तकलीफें दिखायी ही नहीं देती है।
ऐसी परिस्थिति में ज्यादातर व्यक्ति दो तरह से अपनी प्रतिक्रिया देते हैं –
१. पहली प्रतिक्रिया कि हम इस दुनिया के सबसे दुखी प्राणी हैं और हमारा दुःख सबसे बड़ा है। हमारा तन और मन दोनों ही तकलीफ में हैं। हमारी समस्या का समाधान नहीं है। दुनिया के सारे लोग सुखी हैं और हमारी ज़िंदगी में बहुत तकलीफ़ें हैं। जिसने कभी दुःख ना देखा हो ,वे कभी हमारा दुःख नहीं समझ सकते इसलिए वे हमें सिर्फ सलाह देते हैं क्योंकि सलाह देना आसान है लेकिन दुःख झेलना मुश्किल। ये सोच इन्हें और ज्यादा निराश तथा नकारात्मक बना देती है। इस तरह के व्यक्ति ना तो अपनी मदत स्वयं करते है और ना किसी को अपनी मदत करने देते हैं और इसीलिए वे मानसिक बीमारियों के चक्रव्यूह में उलझते चले जाते हैं क्योंकि वे अपनी तकलीफों से बाहर आना ही नहीं चाहते बल्कि उन्हीं समस्याओं के खोल में खुद को कैद करके अपने आपको संसार का सबसे दुखी प्राणी घोषित करके सारी दुनिया की संवेदना प्राप्त करना चाहते हैं और इसी रोने में ही खुश रहते हैं और इसी तरह से अपना सम्पूर्ण जीवन बीता देते हैं।
२. एक दूसरे तरह के व्यक्ति होते हैं जो जुझारू प्रवृत्ति के होते हैं। ये अपनी ज़िंदगी में आने वाली समस्याओं को चुनौती समझकर उसका समाधान ढूँढ़ने में लग जाते हैं । ऐसे लोग परिस्थिति के आगे घुटने टेकने के बजाय परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाने में विश्वास रखते हैं। इस श्रेणी के लोग मुश्किलों से जूझने के बाद और ज्यादा मजबूत बन जाते हैं तथा स्वयं को निखारकर मुश्किलों का और दृढ़ता से सामना करते हैं और इसीलिए इस वर्ग के व्यक्ति सफल व्यक्तियों की श्रेणी में खड़े होते हैं और यही वे व्यक्ति होते हैं जिनके पास हर समस्या का समाधान होता है जिससे वे अपना तथा दूसरों का जीवन भी आसान बना देते हैं और दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनकर उभरते है और इनका नाम इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो जाता है।
ऐसा नहीं है कि इन्हें एक प्रयास में ही सफलता मिल जाती है लेकिन अनेक असफल प्रयासों के बाद इन्हें सफलता मिलती निश्चित है।
चिंता करने की आदत से छुटकारा [समाधान]

अगर हम चाहें तो चिंता करने की आदत को अभ्यास द्वारा प्रशिक्षित करके काफी हद तक सुधारा जा सकता है। ये प्रक्रिया थोड़ी मुश्किल हो सकती है लेकिन नामुमकिन नहीं है।
१. अगर हमें अपना जीवन हँसी -ख़ुशी बिताना है तो सबसे पहले हमें ये समझना होगा कि इस दुनिया में अगर कुछ चीज़ें भगवान ने सबको दी हैं तो उनमें से एक है दुःख ,तकलीफें या परेशानियाँ। इसलिए सबसे पहले तो हमें अपनी तकलीफों तथा संघर्षों को स्वीकार करना पड़ेगा और फिर उन तकलीफों से जमकर लड़ाई करनी होगी।
हमारी ये लड़ाई हमें पहले से ज्यादा योग्य तथा शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत ज्यादा मजबूत इंसान बनाएगी और हम अपने आपके बेहतर संस्करण वाले इंसान बनकर तैयार हो जायेंगे और अब हम अपने मन को नियंत्रित करने में सक्षम हैं और अत्यधिक चिंता की स्थिति से बाहर आ चुके है और चिंतन की अवस्था में प्रवेश कर रहे हैं जहाँ मन हमारे इच्छानुसार ही कार्य करता है।
२. बचपन से सुनती आयी हूँ कि “जो होना है उसे हम बदल नहीं सकते” तो सीधी बात है जिन चीज़ों को बदलना हमारे वश में नहीं तो चिंता क्यों करें।
दूसरी बात जो होना है वह होगा परन्तु जो नहीं होना है वह नहीं होगा तो जो होना ही नहीं है उसके बारे में व्यर्थ में ही कल्पना करके चिंता क्यों करें।
स्पष्ट है कि चिंता हम करते है लेकिन इसकी आवश्यकता नहीं है। हमारे हाथ में सिर्फ हमारा कर्म है तो बिना चिंता किये कर्म पर ध्यान लगाना चाहिए।
३. चिंतन करें, चिंता नहीं क्योंकि चिंतन से समस्या का समाधान मिलता है जबकि चिंता करने से मानसिक तथा शारीरिक समस्या बढ़ती है।
४. अपने दिमाग को अच्छी सोच के लिए प्रशिक्षित करें या अच्छी सोच की आदत डाले जो निरंतर प्रयास से संभव है।
एक प्रयोग द्वारा कोई भी इंसान अपने अंदर अच्छी या बुरी सोच उत्पन्न कर सकता है उस सोच या काम को अपनी आदत बनाकर।
इसके लिए आप जो भी आदत सीखना या छोड़ना चाहते हैं , उसे एक पेपर पर सकारात्मक रूप में लिख लें फिर इस पेपर को अपने पास रखें और सुबह उठते ही और रात को सोने से पहले इसे ज़रूर पढ़े। इसके अलावा जब भी निराशा महसूस हो , इसे पढ़ लें। काम से काम २१ दिनों तक ये प्रक्रिया ज़रूर दोहरायें। अगर आप ज्यादा ही समस्याओं के शिकार हो तो तब तक ये प्रक्रिया दोहराते रहें जब तक ये आदत आपके व्यवहार में न दिखने लगे।
५. अगर कोई इंसान आपकी मदत कर सकता है तो वह सिर्फ आप हैं इसलिए अपने अंदर ऐसी इच्छाशक्ति पैदा करें जो आपको चिंता से निकलकर चिंतन की अवस्था में ला सके।
6. meditation अर्थात ध्यान तथा व्यायाम की सहायता से भी चिंता की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।
7. अपने दोस्त, परिवार से मदत लें और उनके द्वारा दिए गए सुझावों पर कार्य करें। अगर इन परिस्थितियों से बाहर आना है तो प्रयास तो आपको ही करना पड़ेगा, दूसरे सिर्फ आपको सलाह तथा मार्गदर्शन दे सकते हैं।
8. अगर ज़रूरत लगे तो मानसिक रोग विशेषज्ञ की मदत भी ज़रूर लें। वे प्रशिक्षित होते हैं। ऐसी समस्याओं को वे बेहतर ढंग से सुलझा सकते हैं।
9. आप यहाँ भी अपनी परेशानी लिख सकते हैं। मैं भी आप सबकी मदत करने की पूरी कोशिश करूँगी।
10.
सुझाव

हम सबको अपने जीवन में सुख तथा दुःख दोनों का ही सामना करना पड़ता है। उतार तथा चढ़ाव हम सबके जीवन का एक अहम् अंग है। जीवन के हर पहलू का हमें स्वागत करना चाहिए। जो भी कठिनाइयाँ आये जीवन में उनसे लड़कर खुद को सुधारना चाहिए और जो परिस्थितियाँ वश में नहीं उन्हें स्वीकार करके खुद को वहाँ से हटा लेना चाहिए या स्वयं को बदल लेना चाहिए।
जिन परिस्थितियों को हम बदल नहीं सकते चाहे हम कितना भी प्रयास करें तो उस विषय पर चिंता क्यों करें और जिस भविष्य के बारे में हम पहले से ही चिंता करते है कि क्या होगा – ये स्थिति भी हमारे वश में नहीं हैं और हो सकता है जिस घटना से डर कर हम अपनी सेहत ख़राब कर रहे हैं वह स्थिति कभी जीवन में आये ही नहीं ….. तो इसके लिए भी चिंता क्यों करें।
अतः ये स्पष्ट है कि अगर ज़िंदगी में खुश रहना है तो चिंता से दूर रहें और अपने दिमाग को प्रतिदिन इस सत्य का प्रशिक्षण दें कि
“जो होना हैं वह होकर रहेगा, चिंता करने से कुछ बदलेगा नहीं तो चिंता क्यों करें और जो होना ही नहीं है तो फिर उस भविष्य की भी चिंता क्यों करें”
हमारे हाथ में हैं कर्म करना तो बस अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बिना चिंता किये हुए जी-जान से मेहनत करते जाये और आने वाली चुनौतियों का जमकर सामना करें। देखिये कैसे आपके रास्ते खुलते जायेंगे और आप ख़ुशी ख़ुशी कब अपनी मंज़िल तक पहुँच जायेंगे आपको पता ही नहीं चलेगा …
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