जीवन के सूत्र: कैसे पाएं स्थायी खुशी? आखिर ख़ुशी कहाँ है और इसे कैसे ढूँढे ,

ख़ुशी वह मानसिक अवस्था है जिसे हर जीव महसूस करना चाहता है चाहे वह जानवर हो , पक्षी हो ,वृक्ष हो , बच्चा हो , नौजवान  हो या वृद्ध हो। ख़ुशी की अवस्था में हम आनंद तथा सुकून की अवस्था में होते है। इस अवस्था में  महसूस होता है कि यदि इस दुनिया में कहीं स्वर्ग है तो वह यहीं है। हमें अपने जीवन के हर पल में ख़ुशी का एहसास ही चाहिए होता है और होना भी चाहिए। हम सबको एक ही जीवन मिला है ,अगले जन्म का भरोसा नहीं तो इस जीवन को ख़ुशी तथा उत्साह के साथ बिताना चाहिए और हमें दूसरों को भी ख़ुशी देने की कोशिश करनी चाहिए। मगर हमारी ज़िंदगी में होता इसका उल्टा ही है , ख़ुशी की तलाश में हम ख़ुशी से और दूर होते जाते है। ख़ुशी की तलाश कभी पूरी नहीं होती है। इंसान खुश रहने के लिए ज़िंदगी भर संघर्ष करता रहता है लेकिन फिर भी ख़ुशी को जी भर के अपने जीवन में महसूस नहीं कर पाता है। 

प्रसन्न रहना हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है और ये हमें सीखना पड़ता है। इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसके जीवन में दुःख या तकलीफ़ नहीं है। दुःख और तकलीफें तो जन्म लेने के साथ ही शुरू हो जाती है इसीलिए एक बच्चा भी रोते हुए ही इस संसार में  जन्म लेता है तो फिर थोड़ी सी भी परेशानी से हम विचलित और दुखी क्यों हो जाते हैं आखिर इसका कारण क्या हो सकता है। 

१. क्या मैं इस दुनिया में ऐसा अकेला व्यक्ति हूँ जिसने दुःख का अनुभव किया है। 

२. क्या ये जो कुछ लोग हमेशा खुश रहते है ,उनके जीवन में कोई दुःख नहीं है। 

 जैसे ही आप इस तरह सोचना शुरू करेंगे आप स्वयं समझ जायेंगे कि जो लोग हमेशा प्रसन्न रहते है उसका कारण  सिर्फ  इतना ही है की उन्होंने अपने जीवन को जीने के लिए प्रसन्नता का चुनाव किया है। जब सबके ही जीवन में सुख और दुःख दोनों है तो क्यों ना हम भी अपने जीवन को आनंदमय तरीके से जीना शुरू करें।  

 जब हम ख़ुशी ढूँढने घर से बाहर जाते है , ख़ुशी के लिए दूसरे पर निर्भर रहना शुरू कर देते है या अपने मन में कुछ उम्मीदें पाल लेते हैं , उसी दिन से हमारे जीवन में दुःखों का आगमन हो जाता है और मानो ख़ुशी रूठकर बहुत दूर चली जाती है।

अकसर हम अपनी ज़िंदगी में एक बहुत बड़ी गलती करते हैं जब हम खुद का जीवन जीना ही भूल जाते हैं। हम अपने जीवन में खुद को छोड़कर सारी दुनिया को महत्व देने लगते हैं। हम अपनी ख़ुशी या तकलीफों को नज़रअंदाज़ करके दूसरों की ख़ुशी की खातिर जीने लगते हैं और वही व्यक्ति हमें फालतू समझकर बड़ी बेरहमी के साथ हमारे साथ ही बुरा व्यवहार करना शुरू कर देता है और हम अपने आप को बेबस समझकर उसके साथ के लिए रोना और गिड़गिड़ाना शुरू कर देते हैं। इसे अगर दूसरे शब्दों में कहे तो हम अपने सुख और दुःख की चाभी किसी और के हाथों में दे देते हैं। अकसर हम अपने किसी से इतना प्यार करते हैं कि उसके सुख और दुःख से हम भी दुखी हो जाते हैं या कभी उस इंसान पर इतना निर्भर हो जाते हैं कि अगर वह अच्छे से बात करें ,उसका व्यवहार अच्छा हो तो हम खुश रहते है , अगर उसका व्यवहार सख्त ,रुखा ,क्रोधित अथवा परवाह करने वाला न हो तो हम दुःखी रहना शुरू कर देते हैं और फिर हम खुद को खुश रखने के लिए उस व्यक्ति के सामने गिड़गिड़ाना शुरू कर देते हैं तो इसमें गलती किसकी है ? 

अगर हम अपने को खुश रखने की ज़िम्मेदारी किसी और को देंगे तो वह इंसान अपनी ज़रूरत के अनुसार ही हमें खुश रखेगा और जब ज़रूरत नहीं होगी तो हमें दुःख भी दे सकता है। 

अत्यधिक चिंतन भी हमारी ख़ुशी को समाप्त कर देता है। हमारे जीवन में बहुत सी घटनाओं पर हमारा वश नहीं होता है लेकिन फिर भी हम उन घटनाओं के बारे में सोच- सोचकर अपना दिमाग ख़राब कर लेते हैं। 

कभी हम अपने जीवन में घटित हो चुकी घटनाओं के बारे में भी सोचते रहते हैं जिसे पूर्व में जाकर बदलना असंभव होता है फिर भी उन घटनाओं के बारे में सोचकर हम अपनी वर्तमान की खुशियों पर भी ग्रहण लगा देते हैं। 

इसी प्रकार भविष्य के बारे में अत्यधिक सोचकर परेशान होना भी व्यर्थ है क्योंकि शायद वह घटनायें जीवन में कभी घटित होंगी ही नहीं जिनके बारे में सोचकर हम आज की खुशियाँ भी गवाँ देते हैं। भविष्य का तो वैसे भी पता नहीं कि जीवन में क्या परिस्थितियाँ रहेंगी तो आज की खुशियों को क्यों ख़राब करना ?

मनुष्य का स्वार्थी स्वभाव भी उसकी खुशियों को समाप्त कर रहा है। हर व्यक्ति को प्यार , परवाह , सम्मान तथा अपनों का समय चाहिए लेकिन यही सब चीज़ें वह दूसरे व्यक्ति को बिना मतलब के नहीं देते। मतलब अपने लिए कुछ और व्यवहार चाहते है और दूसरों के साथ कुछ और व्यवहार करते हैं और इस कारण भी हमारी ज़िंदगी से खुशियां ख़त्म हो जाती है। 

संयुक्त परिवार की परंपरा के कारण हमें जो सुरक्षा तथा सबका साथ मिलता था वह आज एकल परिवार की परम्परा के कारण कहीं पीछे छूट गया है जिसके कारण व्यक्ति अकेला , असुरक्षित , अशांत तथा दुःखी रहने लगा है। 

आजकल लोग अकेले रहना ज्यादा पसंद करने लगे हैं। अपने परिवार , रिश्तेदार तथा पड़ोसी  आदि किसी से भी व्यक्ति संबंध नहीं रखना चाहता इस कारण भी वह अकेलेपन तथा दुःख में डूबने लगता है। 

जलन की भावना भी हमारे रिश्तों तथा हमारे मन की शांति को ख़त्म कर देती है और बिना कारण ही हम दुःखी रहने लगते है। 

आजकल लोगों के जीवन जीने का तरीका भी बहुत अलग हो गया है। व्यक्ति भौतिक वस्तुओं तथा पैसे के पीछे ज्यादा भाग रहा है और मानवीय संवेदना ,रिश्तों तथा भावनाओं को नज़रअंदाज़ करके अपने ज़िंदगी में दुःख तथा अकेलेपन को आकर्षित कर रहा है। 

नकारात्मक नज़रिया हमें हमारी खुशियों से दूर कर देता है। नकारात्मक स्वभाव हमें हर घटना के बुरे पक्ष को देखने के लिए मजबूर कर देता है जिससे हम दुखी तथा निराश महसूस करते हैं। 

आज हम अज्ञानतावश खुद ही खुशियों से दूर होते जा रहे है और वहीं दूसरी ओर ख़ुशी की तलाश में भटक भी रहे हैं। ख़ुशी की तलाश में भटकता हुआ मनुष्य चिंता, अवसाद तथा निराशा जैसी व्याधियों का शिकार होता जा रहा है। ख़ुशी के अभाव में व्यक्ति को अपना जीवन अर्थहीन लगने लगता है और वह उदास तथा निराश रहने लगता है और परिणामस्वरूप अपनी तरफ आने वाली खुशियों का रास्ता स्वयं अपने ही हाथों से अवरुद्ध अर्थात बंद कर देता है। 

   आजकल जिसे भी देखो वह ही ख़ुशी की तलाश कर रहा है। लेकिन ख़ुशी है कि किसी के हाथ में नहीं आ रही है बल्कि जितना हम इसकी तलाश कर रहे हैं ये हमसे और दूर होती जा रही है तो हम अपने जीवन में खुशियाँ आखिर कैसे लाए  ?? 

१. सबसे पहले तो हमें ये समझना होगा कि दरअसल प्रसन्नता एक चुनाव है जिसे हमें अर्थात मनुष्य को चुनना पड़ता है। 

आपने अपनी ज़िंदगी में ये अनुभव ज़रूर किया होगा कि कुछ लोग अपनी ज़िंदगी में हमेशा प्रसन्न रहते है और कुछ लोग इस दुःख में दुखी रहते है कि उनके पास दुखी होने का कोई कारण नहीं है। आपको क्या लगता है कि जो लोग हमेशा खुश रहते हैं उनके जीवन में कोई दुःख नहीं होता है ?

 इस धरती पर ऐसा कोई नहीं है जिसके जीवन में दुःख ना हो, हाँ दुःख की तीव्रता अलग अलग हो सकती है। लेकिन खुश रहने वाले व्यक्ति दुखों को नहीं प्रसन्नता को चुनते हैं। वे इस बात पर यकीन रखते हैं कि जीना तो है ही तो क्यों न फिर ख़ुशी के साथ जीया जाये। वे इस सत्य को अच्छे से समझते हैं कि सुख और दुःख दोनों हमारे जीवन का हिस्सा है और इस सुख -दुःख के चक्रव्यूह से बचा नहीं जा सकता तो फिर दुखी रहकर अपनी ज़िंदगी के कीमती पल को क्यों व्यर्थ में ही गवाया जाये। वे जानते हैं कि रोने से दुःख कम नहीं होता है , हाँ हँसने से दुःख ज़रूर कम हो जाता है  इसलिए वे हर परिस्थिति में हँसना पसंद करते हैं।

२. दूसरी बात अगर आप दूसरों में अपनी ख़ुशी ढूँढ रहे हैं तो आपका खुश रहना मुश्किल होगा क्योंकि दूसरों के व्यवहार पर आपका वश नहीं होता है। दूसरा व्यक्ति अपने स्वभाव के अनुसार ही व्यवहार करेगा ,आपकी ख़ुशी के अनुसार नहीं और ऐसी अवस्था में आपको दुःख होगा। 

३. अगर आपको दूसरे व्यक्तियों द्वारा किये गए व्यवहार से तकलीफ हो रही है तो हमें खुद को ही इतना मजबूत बनाना होगा कि किसी दूसरे व्यक्ति के अच्छे या गलत व्यवहार का हमारे ऊपर कोई प्रभाव न पड़े। 

४. दूसरों से उम्मीद लगाना भी अपने अंदर से ख़ुशी को खत्म करने का एक कारण होता है। बहुत बार कई कारणों से कई उम्मीदें पूरी नहीं होती है और हम निराश हो जाते हैं। 

इसलिए अगर हमें खुश रहना है तो उम्मीदें भी सिर्फ खुद से ही लगानी होगी, दूसरों से नहीं। 

५. घर परिवार ,रिश्तेदारों तथा पड़ोसियों से भी मिलते जुलते रहना चाहिए। हल्की – फुल्की बातचीत तथा हँसी -मज़ाक मन तथा माहौल को खुशनुमा बना देते हैं। 

६. सही दिनचर्या तथा स्वस्थ जीवन -शैली भी हमें खुश रहने में मदत करती है। 

७. दूसरों की मदत करें , ये भी मन को सुख देता है। जब हमारे आस -पास सभी जीव -जंतु तथा मनुष्य खुश दिखते हैं तो पूरा वातावरण खुशनुमा हो जाता है। 

८. सभी प्राणियों में कुछ ना कुछ अच्छा ज़रूर होता है , ज़रूरत है उस अच्छाई को देखने और महसूस करने की, इससे हमारा मन भी प्रसन्नचित्त रहता है। हम मनुष्यों की आदत होती है कि हम दूसरे मनुष्यों में सिर्फ कमियाँ ढूँढ़ते हैं और खुद ही दुःखी भी होते रहते हैं। 

९. हमें सबके लिए प्रेम की भावना रखनी चाहिए और उनकी उपलब्धियों पर भी खुश होना चाहिए। इससे हमारा मन सदैव शांत तथा खुश रहता है। जलन की भावना हमें अंदर ही अंदर कुढ़ने के लिए मजबूर कर देती है और हम दुःखी होकर अपने स्वास्थ्य को भी ख़राब कर लेते हैं। 

१०. सकारात्मक विचारधारा हमें हमेशा प्रसन्नचित्त रखती है। सकारात्मक व्यवहार के कारण व्यक्ति हर बुरी घटना में भी कुछ न कुछ अच्छाई ढूँढ ही लेता है। जो व्यक्ति को खुश भी रखती है और उसके व्यक्तित्व को निखार भी देती है। 

११. अगर व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली समस्यायों को चुनौती के रूप में स्वीकार करें तो उसे समस्यायों से कोई परेशानी नहीं होगी। बल्कि वह इन चुनौतियों को सुलझाते हुए एक बेहतरीन और योग्य इंसान भी बन जायेगा। 

१२. हमें एक बात अच्छे से अपने मन में बैठा लेनी चाहिए कि 

समस्या मतलब चुनौती , चुनौती मतलब जीवन में नए अवसर| जब ये बात हमारे अवचेतन मन में अच्छे से बैठ जाएगी तब समस्या आने पर हम उसका स्वागत नए अवसर के रूप में करेंगे और हमारा जीवन खुशियों से भरा रहेगा क्योंकि जीवन में समस्याओं की कमी नहीं हैं लेकिन अब हम इसे अवसर के रूप में देखेंगे और अपना सम्पूर्ण जीवन संघर्ष करते हुए भी ख़ुशी के साथ बितायेंगे ना कि रोते या अफ़सोस करते हुए। 

१३. अगर खुश रहना है तो खुद से भी प्यार कीजिये। अपनी पसंद और नापसंद को भी महत्व दीजिये। अपने साथ भी अच्छा समय बिताने का अभ्यास कीजिये। जी हाँ , खुद से भी प्यार कीजिये क्योंकि ये सिर्फ खुश रहने का तरीका नहीं है बल्कि आज के समाज को देखते हुए एक बहुत बड़ी ज़रूरत भी है क्योंकि जिस तरह व्यक्ति परिवार और रिश्तों से भाग रहा है और भौतिकता के पीछे भाग रहा है, व्यक्ति का साथ देने के लिए व्यक्ति ही नहीं है , कोई सुख दुःख बाँटने वाला नहीं है तो खुद के साथ का आनंद लेने में ही ख़ुशी मिल सकेगी। 

१४. शारीरिक व्यायाम तथा ध्यान का नियमित अभ्यास हमें खुश तथा स्वस्थ रखने में सहायक है। 

१५. नई -नई चीज़ें सीखने से ज्ञान तो बढ़ता ही है साथ ही ख़ुशी भी मिलती है। 

१६. अपने किसी शौक़ जैसे खेल -कूद , संगीत आदि को पूरा करने के लिए ज़रूर समय निकालना चाहिए। ये खुद को खुश रखने का बहुत अच्छा साधन है। 

१७. इस धरती पर जन्म लेते ही हम रिश्तों के बंधन में बँध जाते है और जैसे -जैसे हम बड़े होते जाते हैं उन रिश्तों के प्रति ,समाज के प्रति ,देश के प्रति तथा खुद के प्रति हमारी कुछ ज़िम्मेदारियाँ भी बनती है। उन ज़िम्मेदारियों को पूरा करने का प्रयास करिये ,इससे एक अलग ही तरह का संतोष तथा ख़ुशी का अनुभव होता है। 

१८. लोगों को उनके अच्छे कार्य के लिए धन्यवाद ज़रूर देना चाहिए। इस तरह से हम स्वयं के साथ दूसरों को भी ख़ुशी देते हैं। 

हमने इस धरती पर इंसान के रूप में जन्म लिया है , ये कोई छोटी बात नहीं है। हम किसी पशु ,पक्षी ,कीड़े -मकौड़े के रूप में भी जन्म ले सकते थे लेकिन हम उन भाग्यशाली लोगों में से है जिसे इंसान का जन्म मिला है तो इस जन्म को रो रोकर काटने में क्या आनंद है। इस इंसान जीवन के हर पल को ख़ुशी- ख़ुशी जीना चाहिए। अगले जन्म का क्या भरोसा ,इंसान का जीवन मिले या जानवर का। ये जीवन बहुत कीमती है ,इसे व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। 

 हमें जन्म के साथ ही खुश रहने का अभ्यास शुरू कर देना चाहिए क्योंकि ये हम सबका जन्मसिद्ध अधिकार है। अगर हम अपने हर दुःख में रोना शुरू कर देंगे तो हमारी ज़िंदगी का एक बड़ा हिस्सा दुःख और तकलीफों में  निकल जायेगा और फिर बाद में हम अफ़सोस करते रहेंगे कि हमने अपनी ज़िंदगी जी ही नहीं।  

अच्छे स्वास्थ्य के लिए भी खुश रहना बहुत ज़रूरी है। अगर हम खुश रहते हैं तो हमारा स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता है। 

हमें ईश्वर ने इस धरती पर भेजा है। जब वह हमें दुःखी या परेशान देखता होगा तो उसे बहुत तकलीफ होती होगी और शायद अफ़सोस भी कि व्यर्थ ही इस व्यक्ति को इंसान का जीवन देकर धरती पर भेज दिया , इसे तो इस जीवन की कद्र ही नहीं है।  

हमें हमारे अपनों के लिए भी हमेशा खुश रहना चाहिए क्योंकि हमारे अपनों को हमें तकलीफ में देखकर बहुत दुःख होता है। 

हमने इस धरती पर इंसान रूप में जन्म लिया है तो हमें भगवान को धन्यवाद देते हुए हमेशा खुश रहना चाहिए। सुख दुःख तो जीवन में आते -जाते रहते हैं , लेकिन अपने जीवन का संतुलन हमेशा बनाए रखना चाहिए। 

एक बात हमेशा याद रखिये कोई भी समय हमेशा के लिए नहीं होता है इसलिए 

 खुश रहिये , स्वस्थ रहिये 

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2 thoughts on “प्रसन्नता: कोई वस्तु ,स्थान अथवा घटना या प्रसन्नता एक चुनाव  ”
  1. This is a very good article! I loved the material, it was very uplifting and I think it will also help people feel better.

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