अच्छा शिष्य बनिए , शिक्षा आपको स्वयं ढूँढ लेगी आइये इस बात को समझने का प्रयास करते हैं । एक कक्षा  में ५० बच्चे पढ़ते हैं कोई आसमान की बुलंदियों को छूता है तो कोई पढ़-लिखकर भी अज्ञानी ही रह जाता है और अपने जीवन में बहुत ही साधारण उपलब्धियाँ ही हासिल कर पाता है। एक अध्यापक तो कक्षा के सारे बच्चों को एक समान ही पढ़ाता हैं फिर क्यों कोई आसमान की बुलंदियों को छू लेता है और कोई उड़ान भरने लायक भी नहीं बन पाता। 

इसका मतलब है कि शिक्षा प्राप्त करना शिष्य की योग्यता पर भी निर्भर करता है। गुरु तो सभी को ज्ञान देता है लेकिन उसका ज्ञान का इस्तेमाल कब ,कैसे ,कितना और किस तरह करना है , ये पूरी तरह से शिष्य पर भी निर्भर करता है। 

अगर कोई व्यक्ति अच्छा शिष्य बन जाये तो फिर इस संसार की हर वस्तु ,घटना ,व्यक्ति , पशु -पक्षी तथा प्रकृति का कण-कण ज्ञान बरसाने लगता है। कहने का तात्पर्य ये है कि सीखने की इच्छा हो तो इस धरती के कण -कण से शिक्षा प्राप्त की जा सकती है। 

इसका अर्थ ये हुआ कि कमाल सिर्फ गुरु या ज्ञान का नहीं है बल्कि उस शिष्य का भी है कि उसने किस लक्ष्य, किस नज़रिये , किस तरीके, किस शिद्दत ,किस अनुशासन तथा कितने त्याग तथा मेहनत से ज्ञान को अर्जित किया है। 

शिष्य की लगन शिष्य को ज्ञानी बनाती है , उसे लक्ष्य तक पहुँचाती है तथा उस शिष्य को भी गुरु के समकक्ष लाके खड़ा कर देती है और फिर ये शिष्य भी गुरु बनकर कई शिष्यों का मार्गदर्शन करता है। यही परंपरा सदियों से चलती आ रही है। 

गुरु हमेशा आदरणीय होता है। कबीर दास जी ने बहुत सुन्दर इसकी व्याख्या की है ,

      गुरु गोविंद दोउ खड़े , काके लागे पाए ,

                                    बलिहारि गुरु आपणे , गोविंद दियो बताए। 

गुरु हमेशा से आदरणीय है , बिना गुरु ज्ञान प्राप्त करना बहुत कठिन है। गुरु मार्गदर्शन देता है। समय रहते शिष्य की गलती बता देता है। 

लेकिन ये भी सच है कि अगर शिष्य में ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा ही न हो तो गुरु कितना भी श्रेष्ठ क्यों न हो , वह शिष्य को कुछ भी नहीं सिखा पायेगा। गुरु का सारा ज्ञान तथा प्रयास उस शिष्य की सीखने की इच्छाशक्ति के अभाव में उस शिष्य के किसी काम नहीं आ पायेगा। 

इसीलिए किसी ज्ञानी व्यक्ति ने कहा है कि “अच्छा शिष्य बनिए , शिक्षा आपको स्वयं ढूँढ लेगी। “

जो हमें ज्ञान दें , वो गुरु होता है। साक्षात् गुरु जो आपके सामने हो ,उनकी तो बात ही अलग होती है। वे कदम -कदम पर आपका मार्गदर्शन करते हैं ,आपको आपकी गलतियाँ तो बताते ही हैं साथ ही मार्गदर्शन भी देते हैं। अगर जीवन में सच्चा गुरु मिल जाए तो भगवान का दर्शन भी संभव हो जाता है। 

 स्कूल,कॉलेज में पढ़ाने वाले शिक्षक के अलावा आप जिन भी चीज़ों से ज्ञान लें या प्रेरणा लें ,सभी गुरु के समकक्ष ही होते हैं। माता -पिता ,दादी ,नानी ,रिश्तेदार ,दोस्त ,पड़ोसी तथा वे सभी परिचित तथा अपरिचित व्यक्ति जिनसे हम जाने -अनजाने अपने जीवन में मिलते रहते हैं ,सभी हमें कुछ न कुछ ज्ञान तो ज़रूर देके ही जाते हैं तो शिक्षक के अलावा ये सारे लोग भी गुरु की श्रेणी में ही आते हैं। 

इनके अलावा वायु, जल ,आकाश, धरती, अग्नि तथा इस धरती का कण कण भी तथा इस धरती पर विराजमान सभी जीव तथा निर्जीव चीज़ भी गुरु हो सकती है। पेड़ -पौधे ,जीव-जंतु तथा जीवन में घटने वाली हर घटना सभी गुरु के समान हैं बस नज़रिया सीखने का होना चाहिए तो फिर हर वो चीज़ जिससे हम मिलते जुलते रहेंगे, सब हमें ज्ञान प्रदान करने तथा आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं । 

लेकिन ऐसी स्थिति में आपका अच्छा शिष्य होना अनिवार्य है , तभी आप अपने ह्रदय तथा मष्तिष्क के द्वार खोल सकेंगे। 

अच्छा शिष्य वह होता है जो हमेशा सीखने अथवा ज्ञान प्राप्त करने के लिए तत्पर रहे। अच्छा शिष्य वह है जो विपरीत परिस्थितियों को भी पाठशाला समझकर उससे अपने जीवन को दिशा देकर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ही लेता है। 

 अगर शिष्य उन भाग्यशाली लोगों में से है जिसे अच्छे गुरु का सानिध्य प्राप्त है तो शिष्य को अपने-आप को गुरु के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए। गुरु के बताए रास्ते पर पूरी श्रद्धा से चलने का प्रयास करना चाहिए । गुरु के बताए रास्ते पर चलने मात्र से ही शिष्य सर्वगुणसम्पन्न बन जायेगा।  शिष्य को अलग से प्रयास नहीं करना पड़ेगा। 

 (ध्यान रखें, गुरु का चयन भी बहुत सोच-समझकर तथा परख कर ही किया जाना चाहिए। )

अब बात करते हैं ऐसे शिष्यों की जिन्हें साक्षात् गुरु तो नहीं मिलते मगर वे इतने अच्छे शिष्य होते हैं कि जीवन में होने वाली हर हलचल से कुछ ना कुछ ज़रूर सीख लेते हैं। 

ऐसे शिष्यों का सबसे बड़ा गुण ये होता है कि वे सकारात्मक नज़रिये वाले होते हैं कि इनके जीवन में होने वाली हर घटना कुछ अच्छा, नया और सुखद परिवर्तन ही लेके आती है जो इनके जीवन को ख़ुशहाल, समृद्ध, सफलता और सुकून से भर देती है। 

अच्छा शिष्य कर्तव्यनिष्ठ, अनुशासित, दृढ़निश्चयी, आज्ञाकारी तथा कठिन परिश्रम करने वाला होता है। वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपने हर सुख का त्याग कर देता है। 

अच्छा शिष्य बहुत जुझारू होता है। वह परिस्थितियों के आगे झुकता नहीं है बल्कि परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लेता है। वह लक्ष्य प्राप्ति के लिए ख़ुशी -ख़ुशी कठिन तपस्या करता है। वह कभी हार नहीं मानता है। वह हर मुश्किल से कुछ ना कुछ सीख ही लेता है, इसीलिए सदैव खुश तथा सफल होता है। 

अच्छे शिष्य के जीवन में भी तकलीफ़ें आती हैं। उनके भी लक्ष्य प्राप्ति के रास्ते में अनेक बाधाएँ आती हैं बस फ़र्क ये होता है कि अच्छे तथा सकारात्मक शिष्य उन बाधाओं का सामना करके और ज़्यादा निखर जाते हैं वही दूसरी तरफ नकारात्मकता से भरा हुआ शिष्य अपना पूरा जीवन रोते हुए, हताश और परेशान होकर गुज़ार देता है। 

ये बहुत सरलता से माना और समझा जा सकता है कि शिक्षा प्राप्त करने के पहले अच्छा शिष्य बनना ज़्यादा आवश्यक है। बिना अच्छा शिष्य बने हुए यदि पूरी दुनिया का ज्ञान भी मिल जाये तो भी वह किसी काम नहीं आ सकता है। 

इसीलिए अच्छा शिष्य बनने की शुरुआत कीजिये, दुनिया- भर का ज्ञान, सभी सुख -सुविधाएँ ,खुशहाली, सफलता तथा सुकून सब कुछ अपने आप ही आ जायेगा। 

अतः ये कहा जा सकता है कि अच्छा शिष्य बनकर ही इस जीवन के समस्त सुख -सुविधाओं का आनंद उठाते हुए अपने लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है तथा एक खुशहाल, सफ़ल तथा संतुष्ट जीवन के आनंद का अनुभव किया  जा सकता है। 

अतः किसी ज्ञानी ने सच ही कहा है कि 

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